दक्षिण दिनाजपुर जिला के कुशमंडी ब्लॉक के अमीनपुर गांव में मां माटिया काली की पूजा पिछले 500 सालों से होती आई है। इस काली पूजा के प्रति गांव के लोगों में असीम आस्था और विश्वास है। यहां पर भले ही 500 सालों से मां की पूजा होती आई है। लेकिन अभी भी मां काली यहां ना ही तो मंदिर है और ना ही मूर्ति। स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां मिट्टी का एक स्तूप बनाकर मां काली की पूजा होती है और काली पूजा के बाद फिर स्तूफ को मिट्टी में ही मिला दिया जाता है। ब्रिटिश शासन काल से ही इलाके के जमींदार योगेंद्र नारायण राय चौधरी ने इस पूजा का शुरुआत किया था। कहावत है कि मां दुर्गा ने जमींदार को सपने में कहा था कि उसकी मंदिर ना बनाई जाए। और उसके बाद से ही मां काली की पूजा मिट्टी का एक छोटा स्तूप बनाकर किया जाता है। इसीलिए यहां मां काली को माटिया काली कहा जाता है। इस गांव के लोग कोई भी शुभ कार्य करने से पहले माटिया काली की पूजा जरूर करते हैं। जहां माटिया काली का के ईशान कोण में एक टूटा फूटा घर हैं। कहा जाता है कि यहां पर माटिया काली के गहने रखे जाते थे। उसी के पास है पंचमुखी शिव का मंदिर। गांव के लोगों के मुताबिक पंचमुखी शिव मंदिर 217 वर्ष पुराना है। माटिया काली के साथ ही साथ पंचमुखी शिव मंदिर के प्रति लोगों की असीम आस्था है। काली पूजा के मौके पर यहां पर माटिया काली की पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है। हजारों की संख्या में लोग यहां आते हैं।।