Kaliaganj I wish Phool and Durga complement each other
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कासफूल के साथ में दुर्गा पूजा का चोली दामन का रिश्ता है। एक समय हुआ करता था जब शरद ऋतु के आगमन के साथ ही साथ खेत खलियानों, सड़क के आसपास सफेद कास फूल कि बाहर खुद ब खुद लोगों को अपनी और आकर्षित करते थे। काश फूल को देख कर ही पता चल जाता था कि अब मां दुर्गा का आगमन होने वाला है। लेकिन अब शहर से लेकर गांव विकास के इस दौर में काश फूल बहुत कम नजर आते हैं। जमीनों पर कंक्रीट जंगल के वजह से काश फूल अब अपनी पहचान खोता जा रहा है। शरद ऋतु‌ के साथ काश फूल और दुर्गा पूजा का वर्णन कवि और साहित्यकारों के कविता और साहित्य में हमेशा से देखा गया है। एक जमाना था जब बंगाल के खेतों में ,तालाबों के आसपास ,नदियों के आसपास सफेद काश फुल के झोंके हर किसी को अपनी और आकर्षित करते थे।काश फुल को देखते ही मां दुर्गा का चेहरा आंखों के सामने दौड़ने लगता है। लेकिन आज काश फूल बहुत कम नजर आता है। शहर की बात तो छोड़ दीजिए आज तो गांव में भी काश फूल बहुत मुश्किल से दिखते हैं। इसी के बीच कालियागंज से सटे भारत और बांग्लादेश सीमावर्ती इलाके में एक खेत ऐसा भी मिला जहां पर काश फूल हिलोरे ले रहे थे। गांव के लोगों ने बताया कि पहले इस इलाके में दूर-दूर तक काश फुल नजर आते थे। लेकिन अब बहुत छोटे इलाके में काश फुल नजर आते हैं। काश फुल के खिलते ही मां दुर्गा का आह्वान शुरू हो जाता है। क्योंकि काश फूल और दुर्गा पूजा एक दूसरे के पूरक हैं।

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